Tuesday, June 9, 2009

दीक्षा

यह शब्द नहीं जीवन की अविरल धारा है ,
यह मेरे अंतरतम में है , बस ये ही मुझको प्यारा है,
जीवन हो दीक्षामय तो फ़िर हमको किसकी अभिलाषा है ,
यह शब्द नहीं जीवन की अविरल धारा है,
बस ये ही मुझको प्यारा है,
इसकी तलाश इसकी तराश में जीवन जीता जाता हूँ,
ये ही वो कविता की धारा जिसमे मैं बहता जाता हूँ ,
पथ में कांटे जब चुभते हैं बस इसकी याद ही आती है ,
फूलों के सेज पर सोता हूँ तो ख्वाबों मेंआ जाती है ,
हर पल हर चं इसकी यादें मेरे जीवन की धारा है ,
बस ये ही मुझको प्यारा है बस ये ही मुझको प्यारा है ,
मुझे मिली नहीं अबतक दीक्षा इसे खान मैं खोजूंगा
समझ नही आता मुझको कौन गुरु मेरा होगा
मेरे जीवन में दीक्षा ही दीक्षा का अवाहन करेगा
इसे हविस्य दे दे देगा
मैं जीवन धनी बनाऊंगा
इस अंधकारमय जीवन को आलोकित कर जाऊंगा
यह शब्द नही जीवन की अविरल धारा है
इसको चाहूँगा इसको पुजूंगा जो सबसे न्यारा है
बस ये ही मुझको प्यारा है
बचा नहीं मेरा वजूद इसमे विलीन हो जाऊंगा
वो लाख ब्चागी पर मैं उसमे ही खो जाऊंगा
वो मेरी रचना होगी वो ही होगी अर्चना
वो ही ज्योति होगी मेरी वो ही होगी ज्योत्स्ना
जो मुझको सुबसे प्यारा है
यह.............................अविरल धारा है .

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