Tuesday, July 28, 2009

बरिश

जब अस्मां ने दिल खोलकर मोती बरसाया तो
मेरा मन ललचाया, सब भीग रहे थे, मुझे जला रहे थे
कोई मेरा हाथ पकरकर कोई मेरा पैर
मैं नही भीग सकता था
क्या करू बेबस था
और मौन था
मौन ....................................एक सन्नाटा ..........................................

3 comments:

  1. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  2. आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
    लिखते रहिये
    चिटठा जगत मे आप का स्वागत है
    गार्गी

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