हमने कोलेज में
दूसरो का भला सोचना सुरु किया
पे वो गुस्सा गए और ........................
उन लोगो का साथ देना सुरु किया
जो इमानदार थे ......वो समझते थे की उनका भला होगा पे
वो ..............आज उनका भगवान भला करे
हम आज भी उन दोस्तों के साथ हैं
पर उनके वो भला करने वाले नही रहे क्यूंकि
उनका अपना ...............................था
Friday, August 14, 2009
Tuesday, July 28, 2009
बरिश
जब अस्मां ने दिल खोलकर मोती बरसाया तो
मेरा मन ललचाया, सब भीग रहे थे, मुझे जला रहे थे
कोई मेरा हाथ पकरकर कोई मेरा पैर
मैं नही भीग सकता था
क्या करू बेबस था
और मौन था
मौन ....................................एक सन्नाटा ..........................................
मेरा मन ललचाया, सब भीग रहे थे, मुझे जला रहे थे
कोई मेरा हाथ पकरकर कोई मेरा पैर
मैं नही भीग सकता था
क्या करू बेबस था
और मौन था
मौन ....................................एक सन्नाटा ..........................................
Thursday, June 25, 2009
हमारा दिल
जब खोजते हैं की हमारा दिल कहाँ है
तब फूलों की तरफ बेबस नजरों से देखतें हैं
डाली पर खिले फूल टूटे पत्ते फिर
धुधतें हैं हमारा दिल कहाँ हैं
जब खोजते हैं हमारा दिल कहाँ है
paharon की उचैयाँ समन्दर की गहराई
बेबस नजरों से खोजते हैं हमारा दिल कहाँ हैं
तब फूलों की तरफ बेबस नजरों से देखतें हैं
डाली पर खिले फूल टूटे पत्ते फिर
धुधतें हैं हमारा दिल कहाँ हैं
जब खोजते हैं हमारा दिल कहाँ है
paharon की उचैयाँ समन्दर की गहराई
बेबस नजरों से खोजते हैं हमारा दिल कहाँ हैं
Tuesday, June 9, 2009
दीक्षा
यह शब्द नहीं जीवन की अविरल धारा है ,
यह मेरे अंतरतम में है , बस ये ही मुझको प्यारा है,
जीवन हो दीक्षामय तो फ़िर हमको किसकी अभिलाषा है ,
यह शब्द नहीं जीवन की अविरल धारा है,
बस ये ही मुझको प्यारा है,
इसकी तलाश इसकी तराश में जीवन जीता जाता हूँ,
ये ही वो कविता की धारा जिसमे मैं बहता जाता हूँ ,
पथ में कांटे जब चुभते हैं बस इसकी याद ही आती है ,
फूलों के सेज पर सोता हूँ तो ख्वाबों मेंआ जाती है ,
हर पल हर चं इसकी यादें मेरे जीवन की धारा है ,
बस ये ही मुझको प्यारा है बस ये ही मुझको प्यारा है ,
मुझे मिली नहीं अबतक दीक्षा इसे खान मैं खोजूंगा
समझ नही आता मुझको कौन गुरु मेरा होगा
मेरे जीवन में दीक्षा ही दीक्षा का अवाहन करेगा
इसे हविस्य दे दे देगा
मैं जीवन धनी बनाऊंगा
इस अंधकारमय जीवन को आलोकित कर जाऊंगा
यह शब्द नही जीवन की अविरल धारा है
इसको चाहूँगा इसको पुजूंगा जो सबसे न्यारा है
बस ये ही मुझको प्यारा है
बचा नहीं मेरा वजूद इसमे विलीन हो जाऊंगा
वो लाख ब्चागी पर मैं उसमे ही खो जाऊंगा
वो मेरी रचना होगी वो ही होगी अर्चना
वो ही ज्योति होगी मेरी वो ही होगी ज्योत्स्ना
जो मुझको सुबसे प्यारा है
यह.............................अविरल धारा है .
यह मेरे अंतरतम में है , बस ये ही मुझको प्यारा है,
जीवन हो दीक्षामय तो फ़िर हमको किसकी अभिलाषा है ,
यह शब्द नहीं जीवन की अविरल धारा है,
बस ये ही मुझको प्यारा है,
इसकी तलाश इसकी तराश में जीवन जीता जाता हूँ,
ये ही वो कविता की धारा जिसमे मैं बहता जाता हूँ ,
पथ में कांटे जब चुभते हैं बस इसकी याद ही आती है ,
फूलों के सेज पर सोता हूँ तो ख्वाबों मेंआ जाती है ,
हर पल हर चं इसकी यादें मेरे जीवन की धारा है ,
बस ये ही मुझको प्यारा है बस ये ही मुझको प्यारा है ,
मुझे मिली नहीं अबतक दीक्षा इसे खान मैं खोजूंगा
समझ नही आता मुझको कौन गुरु मेरा होगा
मेरे जीवन में दीक्षा ही दीक्षा का अवाहन करेगा
इसे हविस्य दे दे देगा
मैं जीवन धनी बनाऊंगा
इस अंधकारमय जीवन को आलोकित कर जाऊंगा
यह शब्द नही जीवन की अविरल धारा है
इसको चाहूँगा इसको पुजूंगा जो सबसे न्यारा है
बस ये ही मुझको प्यारा है
बचा नहीं मेरा वजूद इसमे विलीन हो जाऊंगा
वो लाख ब्चागी पर मैं उसमे ही खो जाऊंगा
वो मेरी रचना होगी वो ही होगी अर्चना
वो ही ज्योति होगी मेरी वो ही होगी ज्योत्स्ना
जो मुझको सुबसे प्यारा है
यह.............................अविरल धारा है .
Wednesday, May 20, 2009
जब कांग्रेस ..................
जब कांग्रेस सत्ता में आयी तो लगा हमारे देश में नव जागरण आ रहा है । देश की जनता विकास के लिए कटिबद्ध है। जनता नही chahti की हर बार सरकार बदले और विकास प्रभावित हो। इसके लिए देश की जनता को लख लख बधाईयाँ ।
हमने किसी को देखा तो
जब हमने किसी को देखा तो मन परेशान हुआ वो यूँ ही इधर उधर टहल रही थी मन में एक ख्याल आया ।
काश ये मन बिकल होता
और तन्हा सा दिखता
उमंगे उठती मन हिलोरे लेता
और फिजा महकती
हमे महसूस होता
और पागलो की तरह दीवाना सा दिखता
काश ये मन बिकल होता .
काश ये मन बिकल होता
और तन्हा सा दिखता
उमंगे उठती मन हिलोरे लेता
और फिजा महकती
हमे महसूस होता
और पागलो की तरह दीवाना सा दिखता
काश ये मन बिकल होता .
Wednesday, May 6, 2009
आज क्या हुआ
कॉलेज जहाँ हम रोज जाने की कोशिस करते हाँ और कुछ लोग रोज जाते भीं हाँ कुछ यूँ हुआ की दो तथाकथित छात्रों के बीच में वाक्युद्घ हुआ। उस वाकयुद्ध में मुझे एक बात की कमी खलीआरोप तो jansnghiyon की तरह लगाया जा रहा था लेकिन कोई कम्यूनिस्ट नही था । वास्तव में कम्यूनिस्ट इसीलिए अच्छे लगते हाँ की सारी समस्याएं उनके पास होती हँ लेकिन उनका हल उनके पास नही होता है लेकिन आज उन समस्यायों का हल निकल आया। वास्तव में कभी कभी समस्यायों का हल न निकले तो ही अच्छा होता है । जैसे तास्कंद समझौता नहीं हुआ होता तो अच्छा था । फिर भी मुझे एक अच्छी बात लगी । लार्कियों से वाकयुद्ध krne का अपना mja होता है ।
यूँ ही
यूँ ही कभी कभी कुछ लिखने का मन करता है। वास्तव में लिखने का मन होताहै लेकिन कभी कभी लिखते हुए कुछ नही भी लिखने का मन करता है । मै आज कालेज में हूँ रोज की तरह धुप में नही । होता ये हा की मार्केटिंग की नौकरी में सिर्फ़ झूठ बोला जाता है जिसे हम व्यावसायिक भाषा में व्यावसाय कहा जाता है । कल भी नही जा पाउँगा क्यूंकि कल दिल्ली में चुनाव है। जहाँ तक मै सोचता हूँ चुनाव के बाद नौकरी की समस्या और बढ़ जायगी ।
Saturday, May 2, 2009
जब किसी का इंतजार होता हँ
कभी कभी किसी का इंतजार होता हँ
कभी कभी किसी से यूँ ही प्यार होता हँ
कोई मन की डाली पर फूल खिलाता है
कभी कभी मन यूँ ही मचल जाता है
कभी कभी अपने पर एतबार होता है
कभी कभी किसी का इंतजार होता है।
कभी कभी किसी से यूँ ही प्यार होता हँ
कोई मन की डाली पर फूल खिलाता है
कभी कभी मन यूँ ही मचल जाता है
कभी कभी अपने पर एतबार होता है
कभी कभी किसी का इंतजार होता है।
Saturday, April 25, 2009
किसी से हमे प्यार है
किसी से हमे प्यार है
किसीका इंतजार है
लोग कहते हैं
वो भी हमे चाहते हैं
और हमे इस बात का एतबार है
दिल का सुकून, यादो की बारात
और उनका इंतजार कब्र तक ,
हमे किसी से प्यार है.
किसीका इंतजार है
लोग कहते हैं
वो भी हमे चाहते हैं
और हमे इस बात का एतबार है
दिल का सुकून, यादो की बारात
और उनका इंतजार कब्र तक ,
हमे किसी से प्यार है.
कुच लिखने का मन है
कुछ लिखने का मन है,
मन की खामोशी से
दिल की गहराई से
कुछ लिखने का मन हँ
उनकी याद आयी तो
कुछ कहने का मन है
वो खिलता हुआ केसर का फूल
चेहरे की रंगत, मन का सुरूर
सब कुछ याद आता हँ फिर कुछ लिखने का मन है
अगर लिखना हो तो चुप रहना बेहतर होता हँ
इसलिए चुप हूँ.
और चुप रहने का मन hai
मन की खामोशी से
दिल की गहराई से
कुछ लिखने का मन हँ
उनकी याद आयी तो
कुछ कहने का मन है
वो खिलता हुआ केसर का फूल
चेहरे की रंगत, मन का सुरूर
सब कुछ याद आता हँ फिर कुछ लिखने का मन है
अगर लिखना हो तो चुप रहना बेहतर होता हँ
इसलिए चुप हूँ.
और चुप रहने का मन hai
Wednesday, April 22, 2009
प्रबन्धन की क्लास में धर्म युद्ध
आज की क्लास में क्रॉस कल्चरल मार्केटिंग पर डिस्कसन हो रहा था, एक मुसलमान स्टुडेंट ने teacher का प्रतिरोध किया। रवि सर का कहना था की इस्लाम धर्म संकीर्ण bichardhara रखता हँ। सफीक का कहना था की नही। बहुत देर तक डिस्कसन होता रहा । मै सोचता हूँ की हर धर्म में कुछ अच्छी बाट हँ, ल्र्किन इस्लाम में बंदिशें ज्यादा हाँ। सफ़क पर्दा प्रथा पर बोलती रही सर बुर्के पर लेकिन मै समझता हूँ की धर्म में भी वही हँ जो समय की मांग थी जब जरूरत थी तब पर्दा जब जरूरत थी तब बुरका। अभी किसी की जरूरत नही हँ।
जरूरत मन की
मैंने आज कुछ लिखने का मन बनाया तो मेरे एक मित्र ने कहा की ब्लॉग पर क्यों नही लिखते सो मैंने ब्लॉग पर लिखना शुरू किया। ये भी एक अजीब सी बात हँ की कोई कहाँ लिखे? कुछ लोग मानस पटल पर लिखते हँ और बहुत कुछ लिखते हँ कुछ लोग कागज पर लिखते हँ। लेकिन मैं KUMPUTER पर लिख रहा हूँ.मानव अपने विकास के करमा में इतना आगे निकल चुका हँ की वह कंप्यूटर पर लिखना ज्यादा पसंद करता हँ। क्या मानव मशीन बन गया हँ.पता नहीं?सोच रहा हूँ पहले ब्लॉग की सेटिंग कर लूँ फिर लिखता हूँ.वैसे ढेर सारी बातें हाँ लेकिन कहाँ से शुरू करूं समझ नही आ रहा हँ फिर भी शुरू तो करना ही होगा।
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